इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, December 24, 2012

सर्दी



पश्मीना शाल लपेटे 
कार में 
काँच बंद
हीटर ऑन किये
ठिठुर रही थी मैं
उस सर्द और सूनी रात... 
नज़र पड़ी फुटपाथ पर,
एक नन्ही सी बच्ची
चंद चीथड़ों में लिपटी
अपनी माँ के सीने से लगी 
सो रही  थी सुकून से...
ज़ेहन में ख़याल आया
जाने कैसे उन्हें नींद आती होगी ??
सर्दी नहीं सताती होगी ??
शायद नहीं सताती.
उनके  पास
एक दूसरे के
प्यार की गरमाहट जो है....

मेरी सर्द उंगलियां 
कस गयीं स्टीयरिंग व्हील पर
आँखों पर धुंध सी छा गयी.
रात ठिठुरते,करवटें बदलते गुज़री...
-अनु 

Saturday, December 15, 2012

एक सीली रात के बाद की सुबह......

नर्म लहज़े में
शफ़क ने कहा
उठो
दिन तुम्हारे इंतज़ार में है
और मोहब्बत है तुमसे
इस नारंगी सूरज को....
इसका गुनगुना लम्स
तुम्हें देगा जीने की एक वजह
सिर्फ  तुम्हारे अपने लिए...

सुनो न ! किरणों की पाजेब
कैसे खनक रही है
तुम्हारे आँगन में.
मानों मना रही हो कमल को
खिल जाने के लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए.....

चहक  रहा है गुलमोहर
बिखेर कर सुर्ख फूल
तुम्हारे क़दमों के लिए....

जानती हो
ये मोगरा भी महका है
तुम्हारी साँसों में बस जाने को...

सारी कायनात इंतज़ार में है
तुम्हारी आँखें खुलने के...
जिंदगी बाहें पसारे खड़ी है
तुम्हें  आलिंगन में भरने को....

उठो न तुम...
और  कहो कुछ, इंतज़ार करती  इस सुबह से....
जवाब दो मेरे सवालों का...
सीली आँखें लेकर सोने वाले क्या उठते नहीं?
बातों का ज़हर भी क्या जानलेवा होता है ??
भावनाओं  में यूँ बहा जाता है क्या ???
कितनी गहरी नींद में हो तुम लड़की ????

जिंदगी  के दिये इन सुन्दर प्रलोभनों के सामने
कहीं मौत का दिया
मुक्ति का प्रलोभन भारी तो नहीं पड़ गया !!!

-अनु
१४/दिसम्बर/२०१२

Tuesday, December 11, 2012

शिकायत परिंदों से.....

मेरे हाथ से छिटक कर
प्रेम बिखर गया है
सारे आकाश में..
देखो सिंदूरी हो गयी है शाम
तेरी  यादों ने फिर दस्तक दी है
हर शाम का सिलसिला है ये अब तो....
कमल ने समेट लिया
पागल भौरे को अपने आगोश में
आँगन  में फूलता नीबू
अपने फूलों की महक से पागल किये दे रहा है
उफ़ ! बिलकुल तुम्हारे कोलोन जैसी खुशबू....
पंछी  शोर मचाते लौट रहे हैं
अपने घोसलों की ओर.
उनका  हर शाम यूँ चहचहाते हुए लौटना
मुझे उदास कर देता है.
देखो बुरा न मानना....
मुझे शिकायत तुमसे नहीं
इन परिंदों  से है...
ये हर शाम
अनजाने ही सही
तुम्हारे न लौट आने के ज़ख्म को हरा कर देते हैं.....

-अनु 


Friday, December 7, 2012

नज़्म से प्रेम तक.....

एक नज़्म पढ़ी
मेरी हँसी पर उसने....
मैं हँस पड़ी
वो बोला-
लो फिर एक नज़्म हुई....

मुझे छेड़ कर उसने 
एक शेर कहा
मैं गज़ल हुई....

दो लफ्ज़ रखे
अधरों पर उसने
मैं गीत हुई....

नगमें  गाये
मेरी आँखों पर
मैं भीग गयी....

कुछ छंद लिखे
मेरी बातों पर
मैं कविता हुई....

वो मौन हुआ 
बस छू कर गुज़रा
मैं प्रेम हुई......
-अनु

Tuesday, December 4, 2012

नारी सर्वत्र पूजिते.....

(ई पत्रिका "नव्या" में प्रकाशित) 

दृढ़ है
अट्टालिका है
दुर्गा है
कालिका है
जिसने हिम्मत कभी ना हारी है
वो नारी है.....

सीता है
शक्ति है
मीरा है
भक्ति है
जिसने जप-तप में उम्र गुजारी है
वो नारी है......

सुकोमल है
सहृदया है
भगिनि है
संगिनी है
जो हर रिश्ते पर वारी है
वो नारी है.......

क्रुद्ध है
क्षुब्ध है
व्यथित है
बेचारी है
जो कोख में गयी मारी है
वो नारी है......
 
अनु 


Sunday, December 2, 2012

मुनिया

("रूबरू दुनिया" के नवंबर अंक में प्रकाशित )


नन्ही सी मुनिया ने
करवट यूँ बदली थी....
उसने  अलसाए 
ख़्वाबों में
देखी एक झलकी थी...


वो  महलों में पलती 
नन्ही एक  रानी थी..

गहनों के ढेर लगे
दासी चांवर झलती थीं..
ढेरों उसकी सखियाँ
स्नेह बड़ा वे करती थीं 
पर भीतर उससे  जलती थीं..
यूँ सुखमय सा जीवन उसका 
वो फूलों पर चलती थी......


-ये मीठा  उसका स्वप्न ही था..
जो देख वो
खुद को छलती थी ,
अलसाए  ख्वाब की 
छोटी सी ये झलकी थी.
टूटी सी खटिया पर वो
बैठी आँखें मलती थी..


कहाँ की रानी...
कैसा  महल !!!!!
मुनिया तो
अपनी माँ की
पाँचवी अभागी लड़की थी,
दिन  भर खटती,
गढ़री पर सोती और
टुकड़ों पे पलती थी..


-अनु 

९/११/२०११ 

Saturday, November 24, 2012

बावली नदी


 नदी हूँ मैं 

नदिया के जैसी ही  

चाहत मेरी है... 

समंदर! तू कितना खारा है 

फिर भी मुझे जान से प्यारा है....


इतराती,इठलाती
मेरी हर मस्ती पर तू
रोक लगा देता है
ठहरा देता है मुझे...
पर मेरा मन तो तेरे लिए बावरा है
समंदर ! तू मुझे जान से प्यारा है...

तुझ में मिल कर
मैं भी खारी हो जाती
नदी,नदी न रहती
वो भी समंदर हो जाती..
मुझे मेरा अस्तित्व खोना भी गवारा है
तू मुझे जान से जो प्यारा है...

अब न कोई फूल खिले मुझमें 
न प्यास बुझे प्यासे की
मुझ जैसी जाने कितनी को
तूने खुद में उतारा है
मैंने  ये स सहर्ष स्वीकारा है
क्यूँकि एक तू ही मुझे जान से प्यारा है... 

-अनु 


Monday, November 19, 2012

प्रेम और जुदाई (दूसरी किश्त)



प्रेम की दूसरी किश्त तो जुदाई ही हो सकती है...कौन सा प्रेम है जिसने जुदाई का दर्द न भोगा हो.....जब जुदाई है तो दर्द है...और दर्द है तभी तो उपजी है कविता...

पहले मेरे दिल में तुम्हारा प्रेम पला करता था
अब तुम्हारे लौट आने की उम्मीद...
तुम्हारे प्रेम से उत्सर्जित
पराबैंगनी किरणों ने
मुझे दृष्टिहीन कर दिया है...
नष्ट हो जाती है
प्रेमोन्माद में 
ओजोन लेयर.......
(प्रेम ह्रदय में एक झूठी आस का दीप जला देता है.....और रोशन रहता है मन इस की लौ से )

तेरे जाने के बाद
जिए हैं मैंने
एक बरस में कई बरस..
कुछ साल
तुमसे
बड़ी हो गयी हूँ
उम्र में ..
अब तो मान लो मेरा कहा .....
(प्रेम याचक बना देता है कभी कभी,या शायद हमेशा...प्रेम देता अधिकार से है मगर इसके पास मांगने के हक़ नहीं हुआ करते...)

तय होती है
सबके हिस्से की ज़िन्दगी
जन्म के पहले से ही....
तेरे साथ
उन चंद सालों में
जी ली मैंने
अपने हिस्से की
पूरी ज़िन्दगी...
अब कहो-
कैसे गुजारूं
अपनी बाकी की उम्र ?
(तेरा यूँ साथ छोडना मुझे गवारा नहीं....जिद्द है तुझे फिर पाने की,मगर कैसे कहूँ???) 

अब  तुम यूँ मिले हो कि पास होकर भी जाने कितनी दूरियां हैं हमारे दरमियान...कितना अनकहा है हमारे बीच, मगर शब्द नहीं हैं...
चुप्पी से बेहतर है
की जायें कुछ
बातें बेवजह....
प्यार का न सही
कोई पुल
तकरार का ही बने
तेरे मेरे दरमियान......
अब नहीं तो क्या....कभी तो था तेरा मुझसे कोई वास्ता.

तू  चला गया इसका क्या गम करूँ.....कभी पास था ये सुकून है......
क्या हुआ जो सुखान्त नहीं,
तेरी मेरी एक कहानी तो है..............
-अनु

Thursday, November 15, 2012

प्रेम और जुदाई (पहली किश्त )


पूरे चाँद की रात हो या हो अमावस...
झरा हो हरसिंगार या कोई काँटा चुभा हो...
तेरा आना हो या चले जाना हो...
दिल में मोहब्बत का सैलाब हो या आँखों में आंसुओं का.......कलम का चल पड़ना लाज़मी है

और ये जज़्बात न वक्त देते हैं न मौका......सो जब,जैसा और जहाँ दिल ने कहा और कलम ने लिखा वो आपसे साझा करती हूँ.....याने टुकड़े टुकड़े हाले दिल <3
   
       एक कारवां की तलाश थी
       
कि भीड़ में गुम हो सकूँ,
       
कारवां तो पा लिया
       
वहीँ तू मुझको मिल गया..
       
अब न कारवां मुझे चाहिए
       
न भीड़ में सुकून है.......(यूँ शुरू हुआ सिलसिला मोहब्बत का.......)
2       
   तितली बनना चाहती हूँ....
रंगबिरंगी तितली
महके फूलों के करीब
उडूं आज़ादी से...
और कभी उसके हाथ आयी
तो पकड़ कर
सीने से लगायी
किसी पुस्तक में सहेज लेगा
सदा के लिए...
.....(प्रेम की पराकाष्ठा !!!!)
  
    उस रोज
जब सीना चीर कर
तुम दे रहे थे
सबूत अपनी मोहब्बत का..
तब चुपके से वहाँ
मैंने अपना एक ख्वाब
छिपा दिया था ...
जो हलचल है तेरे दिल में उसे
धडकन न समझना......
(मोहब्बत एक दीवानगी ही तो है...)

एहसास किसी ख्वाहिश के पूरा होने सा.....
अमावस में चाँद के मिलने सा....
मुस्कुरा उठते हैं लब
चमक जाती हैं आँखें....

मेरे खुश होने के लिए
एक फूल का खिलना काफी है....(खुश होने के बहाने खोजना ही प्रेम है शायद...)
 
   कभी तुम
     
मेरा कोई ख्वाब तो देखो !!
     
देखो मुझे ,
     
तुम से मोहब्ब्त करते...
     
क्यूंकि मैंने
     
तेरे ख्वाबों के
    
सच होने की
    
दुआ मांगी है...... 
  (कुछ अधूरापन सा लगता है कभी......तब ख्वाब  बुने जाते हैं यूँ ही.)
    फिर जुदाई का मौसम..........प्यार में दर्द न हो ऐसा कब होता है.

क्रमशः..... 

अनु


नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...