इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, April 10, 2012

गीत..........जो लिख न सकी.

तुझ पर क्या कोई गीत  लिखूँ???

संग लिखूँ या साथ लिखूँ
चुभती है जो दिल में बात लिखूं ......
बीच डगर में छोड़ गए तुम
जो पा ना सकी , सौगात लिखूँ?

राग लिखूँ या गीत लिखूँ
कोई रस्म लिखूँ या रीत लिखूँ ...... 
गाये जो तुमने संग नहीं
फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?

आग लिखूँ , अँगार लिखूँ
अनचाही  कोई चाह लिखूं.....
साँसों में  है धुआं  भरा  हुआ 
एक  ठंडी सी फिर आह  लिखूँ ?


मान  लिखूँ  अभिमान लिखूँ
तुझको सारा जहान लिखूँ......
वादा  था तेरा जन्मों का 
अब  दो दिन का मेहमान लिखूँ ?

प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
या सहमा सा अतीत  लिखूँ ......
तुम पर सब कुछ तो हार दिया
अब हार के कैसे जीत लिखूँ?

मैं तुम पर कैसे कोई गीत लिखूँ........


-अनु 

43 comments:

  1. प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?

    wah bahut hi sundar rachana ,,,,,pranay ki har to sabase badi jeet hoti hai....sadar badhai anu ji

    ReplyDelete
  2. विचित्र स्थिति है मन की...!
    भावों को सुन्दरता से पिरोया है!

    ReplyDelete
  3. मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
    तुझको सारा जहान लिखूँ......
    वादा था तेरा जन्मों का
    अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?

    बहुत प्रवाह मयी और सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  4. प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
    खुबशुरत पंक्तियाँ,बढ़िया अन्दाज में लिखी सुंदर रचना .....

    RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...

    ReplyDelete
  5. उन्माद लिखें अवसाद लिखें ।

    कुछ पहले की, कुछ बाद लिखें ।

    हर पल का एक हिसाब बने ,

    कुछ भूली बिसरी याद लिखें ।।

    (केवल उत्कृष्ट कविता के लिए / नथिंग इल्स )

    ReplyDelete
    Replies
    1. क्या बात है रविकर जी..........
      आप लिखवाकर ही मानेगे.....
      :-)
      बहुत खूब.
      सादर.

      Delete
  6. वो गीत लिखते भी हैं और कहते है ..कैसे लिखूं...?

    ReplyDelete
  7. मन की उलझन फिर भी मगर गीत बन गयी..
    बहुत सुन्दर लिखा है ..
    'कलमदान '

    ReplyDelete
  8. मान लिखूँ अभिमान लिखूँ
    तुझको सारा जहान लिखूँ......
    वादा था तेरा जन्मों का
    अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?
    कुछ नहीं लिखना ही श्रेयष्कर है , बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  9. वाह अनुजी ...कौनसे छंद की तारीफ़ लिखूं ....हर छंद दूजे से बेहतर है .....बोलो किसका गुणगान करून ......बहुत ही प्यारी ...दिल को छूती रचना !

    ReplyDelete
  10. मन के भावों को दर्शाता हुआ गीत तो आपने लिख ही दिया है,..अति सुन्दर |

    ReplyDelete
  11. अच्छी और प्रेरणादायी रचना।
    सुन्दर प्रयास।
    धन्यवाद।

    आनन्द विश्वास।

    ReplyDelete
  12. वाह अनु!!!
    क्या लिखूँ कैसे लिखूँ-कहते कहते सुंदर गीत लिख दिया आपने
    बहुत प्रवाहमयी रचना!

    ReplyDelete
  13. प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......

    इस उलझन को सुलझाने का एक ही रास्ता है...कुछ लिख ही डालिए :)

    सादर

    ReplyDelete
  14. हर चौकड़े में भावों को निचोड़ के रख दिया है.."बेहद सुंदर गीत लिखा".. बधाई !!

    ReplyDelete
  15. वाह !
    बेहतरीन अनु जी .
    रचना पढ़कर दिल खुश हो गया .

    ReplyDelete
  16. बहुत बेहतरीन। भावपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
  17. तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
    असमंजस ....बहुत कुछ कहने को मन बेचैन ...
    सुंदर रचना ...

    ReplyDelete
  18. गज़ब की कविता! पशोपेश में भी ये हाल है... लिखने का ठान ही लेतीं तो मुमकिन है कोई खंड काव्य रचा जाता!!

    ReplyDelete
  19. pyar ko pyar hi rahne do koi geet n do ............
    shandar abhivyakti !

    ReplyDelete
  20. तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?
    मैं तुम पर कैसे कोई गीत लिखूँ........
    क्‍या बात है ... बहुत ही बढिया।

    ReplyDelete
  21. आपका आभार रविकर जी.

    ReplyDelete
  22. कैसे लिखूँ................?प्रेरणादायी प्रस्तुति |आभार

    ReplyDelete
  23. बहुत सुंदर रचना अनु जी,
    सुंदर गीत के लिये बधाई !

    ReplyDelete
  24. उपसंहार कहूं या उन्वान लिखूं ?
    शाद्वल कहूं या निर्झर की मधुर तान लिखूं ?

    ReplyDelete
  25. उलझनों में उलझकर बहुत ही
    अच्छी गीत का निर्माण किया है....
    बहुत ही सुन्दर लिखा है...

    ReplyDelete
  26. जो लिख न सके वो गीत लिखो
    जो हार में भी हो वो जीत लिखो
    बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
  27. राग लिखूँ या गीत लिखूँ
    कोई रस्म लिखूँ या रीत लिखूँ ......
    गाये जो तुमने संग नहीं
    फिर मूक सा क्या संगीत लिखूँ?

    गहरी अनुभूतियाँ भले लिखी नहीं जा सकती किंतु अधरों पर गीत बन कर आ ही जाती हैं, अति सुंदर.......

    ReplyDelete
  28. आपकी इस रचना ने बहुत प्रभावित किया ....
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  29. वाह: अनु ! बहुत सुन्दर..लिखते चलो..

    ReplyDelete
  30. प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?

    कुछ अनकही अनुभूतियाँ गीत के रूप में पेश कर दी.
    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  31. वादा था तेरा जन्मों का
    अब दो दिन का मेहमान लिखूँ ?

    अनु अच्छा लगा तुम्हे पढ़ना ..बधाई स्वीकारो अच्छे एक्सप्रेशन के लिए

    ReplyDelete
  32. तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?waah....bahut ....acchi expression direct dil tak pahuch jate hain.....badhai...

    ReplyDelete
  33. बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये कविता. अब ये साथ बना रहे इसलिए हम भी आपके जीवन का हिस्सा बन गए..हे हे :P :P

    ReplyDelete
  34. प्रेम की गहरी अनुभूति, जहां हर्ष का अतिरेक और विषाद का गहरापन। प्रेम की प्रतीति और प्रस्फुटन से लेकर विरह और विग्रह तक। कहा कुछ भी नहीं और बचा कुछ भी नहीं। कमाल है।

    ReplyDelete
  35. "प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?"
    प्रीत में यही हार तो जीत है ! बहुत सुंदर रचना ! बधाई

    ReplyDelete
  36. प्रीत लिखूँ या मीत लिखूँ
    या सहमा सा अतीत लिखूँ ......
    तुम पर सब कुछ तो हार दिया
    अब हार के कैसे जीत लिखूँ?


    lovely.... <3

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...