इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Friday, April 13, 2012

नियति

मैं एक राह का पत्थर
उस कठिन पथ पर पड़ा
जीवन भर ठोकरें खाता
बनता रहा,
लोगों की राह का रोड़ा....

थी विशाल अट्टालिका
जिसका मैं अंश था
चोट खाकर 
यूँ टूट कर बिखरा
और राह में जा पड़ा....

मेरे कोने थे नुकीले
चुभते राहगीरों को
वे मुझसे होते आहत.. 
मुझे कोसते
और मारते ठोकरें....

ऐसे ही तिरस्कृत होता, 
बिना उफ़ किये 
मार मौसम  की सहता रहा...
गुम हुई वो नोकें..
निःशब्द मैं बहता रहा..

बरसों की वितृष्णा से
मैं थक  चुका था...
पर नियति में मेरी
कुछ और बदा था...

ऐसी ही एक ठोकर...
ले गयी मुझे
एक पीपल की छाँव में
थका हुआ मैं मानो ..
सो गया  ईश्वर के पाँव में..

तभी कुछ  भोले पथिक आये-
वक्त की मार झेल चुके
मेरे कोमल चमकदार तन पर,
सिन्दूर  और पुष्प  चढ़ाये...
आस्था जताई,गुण गाये....

विस्मित हूँ मैं ....
वो साधारण  राह का पत्थर
आज सबका भगवान कहलाए !!!
-अनु 


35 comments:

  1. बड़े-बड़े शहरों में ऐसा ही होता है...बड़े-बड़े बाबा ऐसे ही बन जाते हैं...

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    1. आप शायद ठीक हैं...मगर मैंने जिस भाव से रचना लिखी है वो ये कि आस्था पत्थर को भगवान बनाती है....मगर पत्थर भी जब पैना था तब न पूजा गया....जब तकलीफें सह कर चिकना हुआ तब उसको धिक्कारना बंद किया गया.....शांत और सरल हुआ तब पूजा गया ...

      सादर.

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    2. बिलकुल सही फ़रमाया...मै भाव को समझ रहा था...पर अपनी बीमारी ही एवें चेपने की है...कृपया इसे अन्यथा ना लें...बहुत खूब रचना और भाव हैं...चित्र ने आपकी भावना को और भी अच्छे से अभिव्यक्त कर दिया है...

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  2. विस्मित हूँ मैं ....
    वो साधारण राह का पत्थर
    आज सबका भगवान कहलाए !!!

    अनुपम भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  3. यह आस्था ही है जो पत्थर को भगवान बनाती है ...सुंदर प्रस्तुति

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  4. बरसों की वितृष्णा से
    मैं थक चुका था...
    पर नियति में मेरी
    कुछ और बदा था.......waah bahut sunder ...sarthak rachna ke liye hardik badhai

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  5. किसी का विश्वास जीतने के लिए विभिन्न अगम परिस्थितियों से जूझना पड़ता है . नियति बनाने में परिश्रम का भी संयोग होता है . बहुत सुन्दर .

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  6. बहुत सुंदर भाव...
    चिकना पत्थर मतलब विनम्रता का प्रतीक
    विनम्रता को मान मिलता ही है...

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  7. ..पत्थर भी भगवान है,
    समय अगर बलवान है !

    और यह भी कि कष्ट सहकर हम मज़बूत बनते हैं !

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  8. वो साधारण राह का पत्थर
    आज सबका भगवान कहलाए !!!
    सब बाबाओं की माया है .. सार्थक चिंतन की रचना

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  9. बेहद शानदार प्रस्तुति।

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  10. बहुत बेहतरीन सफर साधारण पत्थर से भगवन होने तक का|
    आभार

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  11. बेहतर होगा यदि पत्थर को भगवान के रूप मे पूजने की बजाय हम प्रकृति रूपी भगवान को पूजें।

    जो मुझे पता है उसके अनुसार--भगवान [भ=भूमि ,ग =गगन,व =वायु ,। (आ की मात्रा)=अग्नि,न =नीर] प्रकृति के पाँच मूल तत्वों का नाम है जिसके सान्निध्य मे हम हमेशा रहते हैं।

    सादर

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  12. श्रद्धानत जहां हो जाए मन वहीँ भगवान की स्थापना हो जाती है!
    पत्थर की नियति के माध्यम से सुन्दर बात कही कविता में!

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  13. बरसों की वितृष्णा से
    मैं थक चुका था...
    पर नियति में मेरी
    कुछ और बदा था...

    ऐसी ही एक ठोकर...
    ले गयी मुझे
    एक पीपल की छाँव में
    थका हुआ मैं मानो ..
    सो गया ईश्वर के पाँव में..

    तभी कुछ भोले पथिक आये-
    वक्त की मार झेल चुके
    मेरे कोमल चमकदार तन पर,
    सिन्दूर और पुष्प चढ़ाये...
    आस्था जताई,गुण गाये....

    विस्मित हूँ मैं ....
    वो साधारण राह का पत्थर
    आज सबका भगवान कहलाए !!!... होनी यूँ अंजाम देती है

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  14. अनु जी ,
    सदा की तरह बहुत सुंदर रचना रची है आपने ...
    बधाई स्वीकारें !
    "मैं रास्ते में पड़ा पत्थर हूँ " इस पर कुछ समय पहले
    मैंने भी अपने एहसास लिखे थे ..अगर समय मिले तो यहाँ देखें.....
    http://ashokakela.blogspot.in/2011/11/blog-post_30.html
    आभार!
    खुश रहें!

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  15. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  16. विस्मित हूँ मैं ....
    वो साधारण राह का पत्थर
    आज सबका भगवान कहलाए !!!............वाह राह के एक छोटे से पत्थर में भी शब्दों के माध्यम से जान डालती एक खूबसूरत रचना | बहुत सुन्दर शब्द संयोजन :)

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  17. सुंदर रचना
    बेहतरीन पोस्ट

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  18. पत्थर की आत्मकथा हमारे जीवन से कितना मेल खाती है। हमें अनचाहे बहुत कुछ मिल जाता है और जिसकी हमें चाह है वह बस चाह बन के रह जाता है।
    सुंदर अभिव्यक्‍ति!

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  19. आस्था की बात है जो पत्थर को भी भगवान बनादेते हैं...... अनु..बहुत..खूबसूरत रचना

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  20. सही है। इस देश में अधिकतर फुटपाथी मंदिर ऐसे ही विकसित हुए हैं।

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  21. ऐसी ही एक ठोकर...
    ले गयी मुझे
    एक पीपल की छाँव में
    थका हुआ मैं मानो ..
    सो गया ईश्वर के पाँव में..
    बहुत सुंदर रचना है अनु जी,
    मनुष्य का अहंकार भी इस पत्थर जैसा ही है जब तक सख्त है किसी को भी पसंद नहीं आता !
    अहंकार जब पिघलकर बाष्प बनता है उस विराट के साथ एकाकार होता है !
    अच्छी लगी रचना !

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  22. तभी कुछ भोले पथिक आये-
    वक्त की मार झेल चुके
    मेरे कोमल चमकदार तन पर,
    सिन्दूर और पुष्प चढ़ाये...
    आस्था जताई,गुण गाये....

    विस्मित हूँ मैं ....
    वो साधारण राह का पत्थर
    आज सबका भगवान कहलाए !!!

    ठोकरें खाकर पत्थर भगवान हो जाता है लेकिन आदमी , आदमी भी नहीं बन पाता।

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  23. प्रेम की सरल भावना ही ऐसी है कि हम पेड़ से प्रेम करते हैं क्योंकि वह पेड़ है. हम पत्थर से प्रेम करते हैं कि क्योंकि वह पत्थर है. बहुत सुंदर रचना.

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  24. शायद इसी को किस्मत कहते हैं इसलिए जो जब मिले स्वीकार करना चाहिए चाहे ठोकर ही क्यों हो ...

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  25. प्रेम और आस्था ..हमेशा एक दूसरे के पूरक रहे हैं ......और नियति इनकी रचैता....
    ...वह चाहे तो पत्थर को ईशवर बनादे ....नियति के इसी अचम्भे को परिभाषित करती सुन्दर रचना

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  26. कविता के भाव बहुत सुन्दर हैं ।
    हालाँकि आजकल कुछ रास्ते के पत्थर भगवान बनकर दुनिया को बेवक़ूफ़ भी बना रहे हैं । :)

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  27. .

    होता है…
    कई बार भाटे भी भगवान बन जाते हैं…

    :)
    पत्थर की आत्मकथा के रूप में यह कविता अच्छी लगी…

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  28. भाव बहुत सुन्दर हैं .

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  29. अच्छी व्यंग्य रचना है अनु जी ,यहाँ भगवान बनना और बनाना सबसे आसान है !

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