इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Monday, April 30, 2012

फरेब

बड़े बुसूक से दुनिया फरेब देती है....बड़े ख़ुलूस से हम ऐतबार करते हैं.......


क्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
क्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????


जाने क्यूँ मिल जाते है फरेबी आसानी से..
जाने क्यूँ मिल जाते हैं हम फरेबियों को....
जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????

















उसने अपनी
दोनों बंद मुट्ठियाँ
मेरे आगे रख दीं ...
कि चुन लूँ मैं 
कोई एक.
मैंने एक पर हाथ रखा..
उसमें थी
एक तितली...
जो मुट्ठी खुलते ही उड़ गयी...
खो देने के एहसास से घबरा कर 
मैंने जिद्द की,
और दूसरी मुट्ठी भी मांग ली.
पर उसमें  तो रेत निकली..
जो फिसल गई ...
कुछ हाथ ना आया मेरे.....
तब समझी,
कुछ देने की
नियत जो नहीं थी
उस फरेबी की ...
-अनु 



59 comments:

  1. सच कहा आपने फरेबी तो अक्सर मिल जाते है पर अच्छे लोग खोजने पर भी नहीं मिलते हैं |

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  2. क्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
    क्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
    क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????...

    आसान हो न हो , फरेब सह ही जाते हैं ....

    एक बात कहूँ , कभी कभी रेत ही ज़िन्दगी होती है.... मुट्ठी से फिसलती रेत दृढ़ मनोबल दे जाती है , फुर्र से उड़ गई तितली आकाश तक पहुँचने का संकेत

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  3. जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????
    मेरा मानना है की सच्चे लोग आपके आस पास ही होते हैं ,
    वो ढेर में नहीं गिने चुने होते हैं ..बस हम उन्हें पहचानना भूल जाते हैं ..

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  4. ये दुनिया ही फरेबी है..जरा सम्भल कर..अनु.. ...

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  5. बहुत सुन्दर गहन अभिव्यक्ति अनुजी

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  6. उस फरेबी के झांसे में फंसना भी तो बड़ा भाता है..अच्छा लिखा है..

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  7. बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

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  8. क्यूँ आसान है किसी पर यकीं करना...
    क्यूँ आसान है किसी को फरेब देना...
    क्यूँ आसान नहीं किसी फरेब को सह जाना?????

    हर बार मिला फरेब फिर भी यकीन करते रहे
    ज़िंदगी भर बस यूं ही हम चलते रहे ....

    मुट्ठी मे कम से कम तितली और दूसरी में रेत तो थी ... कितनी बार तो खाली मुट्ठी भी होती है ...

    बहुत खूबसूरती से लिखा है मन के भावों को ... अभी भी मुट्ठी से रेत फिसलती देख रही हूँ

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  9. Emotional fools always get this treatment.

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    1. hey blue bird.....
      hope u are not talking about me!!!
      or its u???
      :-)

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  10. कई बार इन्सान फरेबी को पहचानते हुए भी मृग मरीचिका के पीछे भागता है , जज्बात तो इसी का नाम है . अभिनव प्रयोग .

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  11. bahut sundar kavita,,,,,, arthpurn!

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  12. सच्चे लोग नहीं मिलते सच्चों को...
    सच है, फ़रेब हर तरफ मिल जाता है...
    फिर भी, सच्चाई बनी रहती है, बस ये विश्वास कभी न टूटे!

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  13. वाह क्या बात है
    अरुन (arunsblog.in)

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  14. फरेबी और फरेब ..आसान हैं इसलिए मिल जाये हैं.सचाई मुश्किल जरुर है पर नामुमकिन
    बहुत अच्छे भाव .

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  15. बहुत सुंदर रचना...गहन भावों को कितनी सरलता से संप्रेषित कर दिया है....

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  16. बहुत सुंदर गहन भावों की प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना

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  17. ओह कितनी अर्थपूर्ण सुंदर रचना !

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  18. जिसके पास जो है वो वही दे सकता है ....उसके पास जो था ,.....उसने सब आपको दिया ....तितली भी ....रेत भी .....आपने दोनों मुट्ठी मांगीं ...उसने दोनों दे दीं......
    अपेक्षाओं से भरा जीवन बड़ा कठिन है ....!!
    सुंदर बात कहती कविता ....
    बहुत अच्छी लगी !

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    1. Sidha saccha sach ... jiske paas jo hai , vahi to de sakta hai ! Hum neem se aam ki aasha kartey hai ....and then cry foul ! :)

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  19. लाजवाब
    निःशब्द करती रचना..
    बेहतरीन प्रस्तुति......

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  20. बहुत सुन्दर भाव
    उड़ाते हुए तितली का एहसास तो दे ही गया वो फरेबी ...

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  21. ये फ़रेब का बाज़ार कब तक चलेगा? कब तक उनकी मुट्ठी गरम रहेगी?

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  22. गर उन्हें खुशी मिलती है मुझसे फरेब कर,
    तो यूं भी सही ,बस खुश रहें वे ,
    इसी में खुशी मेरी |

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  23. अच्छों को अच्छे मिलें ,मिले नीच को नीच ,

    पानी से पानी मिले ,मिले कीच से कीच .

    बढ़िया रचना है चलो कुछ मिला ही है फरेब सही ,ये अपने नसीब की बात है .

    कृपया यहाँ भी पधारें -
    डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
    सोमवार, 30 अप्रैल 2012

    जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा

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  24. एहसासों से भावुकता का जन्म होता है ......
    शुभकामनाएँ!

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  25. बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!

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  26. बहुत सुन्दर भाव बढ़िया रचना है .

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  27. प्रासंगिक भाव.... सचेत रहना ज़रूरी

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  28. मेरे गुरुदेव के.पी. सक्सेना कहा करते थे कि बंद मुट्ठी पर शर्त नहीं लगाते... इसमें से हमेशा वही निकलता है जिसकी हमें उम्मीद नहीं होती...इसे फरेब नहीं कहना चाहिए.. हाँ कुछ लोग जानकर भी फरेब खाते हैं.. ये एक अलग दीवानगी होती है.. बहुत ही अच्छी कविता!!

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  29. बहुत खूब...देने वाले की नियत ही सही नहीं थी...तो मिलता क्या...ऊपर वाला भी कुछ ऐसे ही फरेब खेलता है...

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  30. बहुत ही सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  31. फ़रेबी तो मिलेंगे ही...
    आवश्यकता है फ़रेब को समझ कर उनसे बचने की...
    नेकी पर चलें और बदी से बचें...

    रचना भाव को संप्रेषित करने में सफल है!!!

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  32. गहरी बात, आभार!

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  33. कुछ देने की नियत ही नहीं थी , वरना मुट्ठियाँ बंद क्यूँ थी !
    वाह !

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  34. :) अच्छी लगी कविता!!

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  35. Bahut badhiya, Anu ji! Sach kaha aapne, kuch logo ki fitrat hi aisi hoti hai -- dhokha aur fareb karna...

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  36. har galat cheej asaan hoti hai ..aur har achhi cheej kathin yaa kathinta se uplabdh hoti hai.. makan banaane me jindagi khatam ho jaati hai ..todne vala minute nahi lagaata ... aapki rachna ke ye bhaav behtreen ..umda

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  37. जाने क्यूँ मिल जाते है फरेबी आसानी से..
    जाने क्यूँ मिल जाते हैं हम फरेबियों को....
    जाने क्यूँ नहीं मिलते सच्चे लोग सच्चों को?????


    पता नहीं उस फरेबी की देने की नियत नहीं थी .... या किसी के सहेजने की नियत नहीं थी ...
    दिल के जज्बातों कों शब्द दिये हैं ...

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  38. अनु जी पहले तो क्षमा की व्यस्तता के चलते अपने blog 'उद्गम' पर की गयी आपकी सराहना का उत्तर बहुत देर से दे रहा हूँ और आपके इस बेशकीमती blog पर भी बहुत दिनों बाद आना हो पाया !!

    और अब आके लग रहा है ऐसी भी क्या व्यस्तता -- अगर मैं कुछ और देर करता तो ऐसी कई बेहेतरीन कृतियाँ छूट जातीं मुझसे |

    निरंतर ऐसे ही विस्मित करते रहिये...बधाइयाँ...!!

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  39. गज़ब......
    शुभकामनायें आपको !

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  40. too good
    न थाम सके हाथ ...न पकड़ सके दामन
    बड़े करीब से उठकर कोई चला गया..

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  41. आज 11/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  42. nicee lines di.....sach hai farebi jaldi milte hai....

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  43. पानी भी बह गया
    रेत भी झड़ गई
    और फिर एक
    कविता बन गई
    सादर

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  44. यही तो है जिंदगी..प्रान तत्व तितली सा उड़ जाता है, रेत ही रेत शेष रहता है। कोई किसी को धोखा नहीं देता बस हम धोखे खाते रहते हैं।

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  45. यही तो है जिंदगी..प्रान तत्व तितली सा उड़ जाता है, रेत ही रेत शेष रहता है। कोई किसी को धोखा नहीं देता बस हम धोखे खाते रहते हैं।

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  46. सही बात, नियत होनी चाहिए ... बहुत सुन्दर !

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  47. ...अच्छा होता कि कुछ लेने की ही उम्मीद न की जाती...।

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  48. मृगतृष्णा कह लो या मृगमारीचिका ,यही जीवन है ...... सस्नेह :)

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  49. एक फरेबी का धोखा ...जिंदगी और मजबूती देता है .....एक नया संकल्प कुछ कर दिखाने का

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  50. kash ye jindagi ret ya titli ke badle kuchh "hari dub" jaisee hoti. ek halka ahsaas to de jaaati sukoon ke saath:)

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  51. जिंदगी हमें बिना मांगे बहुत कुछ देती है हम कभी डाटा का शुक्रिया अदा नहीं करते, याचक बने रहते हैं. दोष दाता को देते हैं.

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