इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, March 28, 2013

दुआ (एक और )

वो उदास आँखों वाली लड़की
सुर्ख फूल
सब्ज़ पत्ते
नर्म हवा
रुकी रुकी बारिश
और मिट्टी की सौंधी महक को चाहने वाली,
माहताब से बदन वाली
वो लड़की...
उदास रहती थी
पतझड़ में.
उसे सूखी ज़मीन और नीला आसमान ज़रा नहीं भाते
उसकी आँखों को चूमे बिना ही
चखा है मैंने
कोरों पर जमे नमक को...
एक रात नींद में वो मुस्कुराई
और बादल उसके इश्क में दीवाना हो गया....

यकीन मानों
खिली धूप में
बेमौसम बारिश
यूँ ही ,बेमकसद नहीं हुआ करती....

(न कोई अनमेल ब्याह,न अपवर्तन के नियम....)
नीले आसमान पर
लडकी के लिए मैंने लिखी जो दुआ
वही तो  है ये इन्द्रधनुष...
अनु

(ये रचना कादम्बिनी के अगस्त अंक २०१३ में छपी )

Thursday, March 21, 2013

लोरी

ये मेरी डायरी का वो पन्ना है जिसे मैं शायद फिर कभी न पढना चाहूँ.....दिल बेशक गुनगुनाता रहेगा !!!
(कविता दिवस पर -कुछ पंक्तियाँ उन्हें समर्पित जिन्होंने उँगलियाँ पकड़ कर लिखना सिखाया ...)

बचपन से सुनती आयी थी
वो अटपटी सी कविता
न अर्थ जानती थी
न सुर समझती....
कविता थी या गीत ???
मचलती आवाज़ से लेकर
खरखराती ,कांपती आवाज़ तक
जाने कितनी बार सुना
लफ्ज़ रटे हुए थे...
जब जब कहती
तब तब वो बेहिचक सुनाने लगते
और मैं खूब हंसती...
बस अपने बाबा की बच्ची बन जाती....

बरसों बाद...
उस रोज़
उस जीर्ण काया के सिरहाने खडी
अचानक वही गीत गाने लगी..
अनायास ही
लगा कि वो मुस्कुराए...
कस के हाथ थामे खडी गुनगुनाती रही....
अटपटे बेमानी से शब्द,
जो सुना था वही दुहराती रही....

वही मुस्कान चेहरे पर लिए
पिता के दिल ने
आख़री बार हरकत की
और फिर शान्ति...
मानो गहरी नींद में चले गए हों...

एक कौतुहल जागा मन में...
और जाने पहले ये ख़याल क्यूँ नहीं आया था ...
खोजबीन की तो पता लगा 
वो अटपटा गीत,जिसके अर्थ से अनजान थी
वो एक लोरी थी.....जो गुनगुनाया करते थे पापा.....

और जब मैंने गुनगुनाया तो वे सचमुच सो गए
शायद सुख सपनों में कहीं खो गए.

अनु 
ये मेरी पापा के साथ आख़री तस्वीर है....उनके जन्मदिन की.उनके जाने के बस  17 दिन पहले.
जिस गीत का ज़िक्र किया है मैंने वो एक लोरी है जो मलयालम में पापा गाया करते थे.....उनके जाने के बाद गूगल पर देखा तो जाना कि वो एक लोरी है जिसे केरल के राजा "स्वाति थिरूनल" को सुलाने के लिए गाया जाता था .इसको प्रसिद्द कवि "इरवि वर्मन थम्पी" 1783-1856 A.D. ने लिखा था....एक और संयोग है कि पापा भी स्वाति नक्षत्र में जन्में थे....और हमारे लिए किसी राजा से कम न थे.
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Sunday, March 17, 2013

डायरी का एक और सीला पन्ना....

सफ़र में होंगे कांटें भी
इस बात से बेखबर न थे
मगर
खबर न थी
के चुभेंगे इस कदर
कि तय न हो सकेंगी
ये लम्बी दूरियां कभी.....

(या कौन जाने ,कोई चुनता रहा हो कांटे मेरी राह के अब तक.... पैरों तले मखमली एहसास  यूँ ही तो नहीं था अब तक.......
यकायक मंजिल दूर चली गयी हो जैसे....)




अनु

Wednesday, March 13, 2013

कहाँ तुम चले गए....

लहु बिखरा था समूचे आकाश में
दम तोडती थी शाम....
उस रक्तवर्णी शाम
तुमने भी तोड़े थे बंधन...
बंधन मोह माया के.
अस्त हुआ था सूरज !!
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उस खालीपन में...
निर्वात में
जीवन संभव न था....
जीने की वजह खोजी
तो पाया एक तारा....
रात के सूने आकाश में टिमटिमाता
सबसे चमकीला तारा...
जो मुस्कुराता है मुझे देख कर !!

(पापा आप मुस्कुराते रहेंगे सदा हमारे दिलों में......अब आपकी याद ही हमारे जीवन का संबल है.)
                                          मेरे प्यारे पापा ..........  RIP 5/03/2013

अनु








नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...