इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Thursday, January 16, 2014

सफ़र

मुश्किल था
एक दिन से
दूसरे दिन तक का सफ़र |
एक दिन
जब तुमने कहा विदा !
और दूसरा दिन
जब तुम चले गए....

फिर आसान था 
हर एक दिन से
दूसरे दिन का सफ़र,
कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
क़दमों की रफ़्तार,
कि कोई मुझे पीछे
अब खींचता न था....

~अनुलता ~

33 comments:

  1. पर सच मे ऐसा कहाँ होता है ... कदम तो जैसे रुक से जाते है किस ऐसे के जाने के बाद |

    ReplyDelete
  2. बहुत उम्दा कविता |अनु जी आभार

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना शनिवार 18/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    कृपया पधारें ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा !!

      Delete
  4. ''मैं तूफानों में चलने का आदि हूँ
    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो ''
    .....गहन दर्द से भारी ....हृदय छूती पंक्तियाँ .........!!बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनु ....

    ReplyDelete
  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    बधाई स्वीकारें आदरणीया-

    ReplyDelete
  6. कोई आए या जाये, सफर चलता रहे :)

    ReplyDelete
  7. दिल की खाली जगह कई बार रफ़्तार बढ़ा देती है !
    बढ़िया !

    ReplyDelete
  8. वाह! बेहतरीन, विछोह के सन्ताप,और
    फिर से सकारात्मक जीवन की तरफ
    बढ़ने को दर्शाते सुन्दर शब्द।

    ReplyDelete
  9. वाह और सिर्फ वाह !!....तुम्हारी हर बात..... भीतर गहरे उतर जाती है अनु...जैसे बड़ी शिद्दत से महसूस कर लिखा हो उसे ....बहोत सुन्दर !!!

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर .... यूँ ही जीवन चलता है ....

    ReplyDelete
  11. 'मैं तूफानों में चलने का आदि हूँ
    तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो ''
    ....................हृदय छूती पंक्तियाँ .

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनु ....

    ReplyDelete
  13. Exquisite thoughts beautifully penned !

    ReplyDelete
  14. मन का यही खालीपन जीवन की निरंतरता को बढ़ा देता है। के कोई होता ही नहीं पीछे से रोकने के लिए। बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति जी :)

    ReplyDelete
  15. वाह !
    पर बिना खींच तान के तेज चल लेना भी आज की तेज दुनिया में गजब गजब नहीं है क्या :)

    ReplyDelete
  16. कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
    क़दमों की रफ़्तार,
    कि कोई मुझे पीछे
    अब खींचता न था....
    :-)

    ReplyDelete
  17. बहुत ही सुंदर भवाभिव्यक्ति उम्दा प्रस्तुति...!
    RECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,

    ReplyDelete
  18. तुम -- हो तो मुश्किल , ना हो तो -- और भी मुश्किल !
    सुन्दर रचना !

    ReplyDelete
  19. कई बार यूँ भी होता है ...
    बहुत अच्छी रचना अनु .

    ReplyDelete
  20. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  21. गहन अभिव्यक्ति...अपने ही पीछे खींचते हैं...

    ReplyDelete
  22. सुन्दर रचना .. सुन्दर भाव..

    ReplyDelete
  23. kitna mushkil...kitni aasani se utar jata hai dil mein..

    ReplyDelete
  24. आसान था
    हर एक दिन से
    दूसरे दिन का सफ़र,
    कि तुम्हारे बिना तेज़ थी
    क़दमों की रफ़्तार,
    कि कोई मुझे पीछे
    अब खींचता न था....

    बहुत गहरी बात...प्रायः हर एक विदा के बाद कुछ ऐसी ही अनुभूति होती है जब भी कोई बेहद अपना विदा ले लेता है।।।

    ReplyDelete
  25. किसी ने कहा था कि बहुत ख़ूबसूरत होते हैं वे पल जो "चलते हैं" से चले जाने तक के बीच होते हैं!! और विदाई की यह अन्दाज़... बेहतरीन!!

    ReplyDelete
  26. बहुत खूबसूरत गहरे भाव अनु जी । ऐसी अनुभूतियाँ तो प्रायः होतीं है पर कविता हमेशा नही बनती । तो वे पल भी जब दर्द कविता का रूप ले लेता है कम खूबसूरत नही होते ।

    ReplyDelete
  27. गहरा एहसास .. किसी की यादें जरूर खींचती हैं पीछे ...रफ़्तार आसांन तो नहीं होती ...

    ReplyDelete
  28. घुटन से मुक्ति - सुंदर रचना

    ReplyDelete

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...