इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Tuesday, June 17, 2014

याद गुज़री.......

सरसराती ,फन उठाती
बिन बुलाये ,
अनचाही  एक
याद गुज़री.....
जाने कब की
बीती बितायी
बासी पड़ी
एक बात गुज़री...
ले गयी वो
चैन मन का
आंसुओं में
रात गुज़री.....

भीगे भीगे ख्वाब सारे
भीगे थे हर सू नज़ारे
बादलों में भीगती
बारात गुज़री.....
महके गुलाबी
कागजों में
झूठी एक
सौगात गुज़री....

बंद करके
रख दिए थे
मैंने माज़ी के दरीचे
सेंध करके
छुप-छुपाती
याद वो बलात गुज़री....
सच का चेहरा
मुझको दिखाती
आइना ले साथ गुज़री !

सरसराती फनफनाती
विष भरी
एक याद गुज़री...............

~अनुलता~




Friday, June 6, 2014

झील

गुनगुना रही थी झील
एक बंदिश राग भैरवी की
कि पानी में झलक रहा था अक्स
उसके ललाट की बिंदी का |

उसके डूबे हुए तलवों ने
पवित्र कर दिया था पानी
कि घुल रही थी पायलों की चांदी
धीरे धीरे.....

झील की सतह पर
उँगलियों से अपनी
वो लिखती रही
प्रेम !!

पढ़ा था झील ने ,
और उसको
फ़रिश्ता करार दिया |

~अनुलता~

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...