इन्होने पढ़ा है मेरा जीवन...सो अब उसका हिस्सा हैं........

Saturday, July 1, 2017

नए पुराने मौसम


मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही !
मोहब्बत,यारियों और बादलों के भी अपने निराले ढंग हैं...मनमर्ज़ियों वाले!
सूनी दोपहर को मैं छत से कपड़े उठाने गयी तो सामने सड़क के उस पार लगे बांस के झुरमुट के नीचे दो सिर नज़र आये...आपस में टकराए हुए....
मैंने थोड़ा ढिठाई दिखाई और उन्हें ध्यान से देखने लगी...दोनों के चेहरे उदास थे
| शायद जुदाई के पल होंगे....हाँ सेमेस्टर एक्ज़ाम्स निपटे हैं,अपने-अपने घर जाने की मजबूरी सामने खड़ी होगी| लड़की की आँखें उदास थीं मगर गीली नहीं....अब लड़कियां आसानी से रोती नहीं!
तभी लड़के ने मोबाइल निकला और अपने सामने कर लिया...दोनों के सिर और क़रीब आये....चेहरे आपस में टकराए...लड़की के गालों का गुलाबी रंग लड़के को हौले से छू गया!!
क्लिक....एक सेल्फी....जुदाई को आसान करने के लिए मोहब्बत की ताज़ा निशानी तुरत-फ़ुरत तैयार थी!
लड़की अब मुस्कुरा रही थी, मैं भी मुस्कुराते हुए भीतर चली आयी...
उन दोनों के मन का कुछ हिस्सा मेरे साथ चला आया....मैंने बरसों से बंद पड़ी दराज़ खोल ली|
डायरियाँ.....जिनमें छिपे है कुछ पनीले दिन....
ये मेरा सबसे प्रिय हथियार हैं, जिनके पन्नों के नुकीले कोनों से अकेलेपन को टोंच टोंच कर रफ़ादफ़ा कर दिया करती हूँ| मैंने सालों पुरानी एक डायरी निकाली और धूल झाड़ने लगी...डायरी के भीतर से एक रुमाल बाहर सरक आया....
सफ़ेद मुलायम रुमाल,जिसके कोने पर लाल रेशमी धागे से तुम्हारे नाम का पहला अक्षर कढ़ा हुआ था|
हमारी जुदाई को आसान करने को तुमने दी थी अपनी निशानी....मोबाइल सेल्फी से कहीं ज़्यादा रूमानी...
सच!!तब यारियों के अपने ही ढंग थे....
 अनुलता राज नायर

 दोस्तों ब्लॉग पर वापसी की है....मिलते रहने की उम्मीद के साथ.........

नए पुराने मौसम

मौसम अपने संक्रमण काल में है|धीरे धीरे बादलों में पानी जमा हो रहा है पर बरसने को तैयार नहीं...शायद उनकी आसमान से यारी छूट नहीं रही ! मोह...